Monday, October 28, 2013

जब अकेला होता हूँ

जब अकेला होता हूँ
तो बहुत बोलता हूँ 
लेकिन कोई सामने होता है 
तो थोड़ा सोचता हूँ
की जो मैं कह रहा हूँ
क्‍या वो सही है
या फिर, जिससे मैं केहना चाहता था 
क्या वो यही है।
अगर दिल से आवाज़ आया 
तो बात आगे बढ़ी
नहीं तो हमारी बातें सुन के गाली जोर से पड़ी।

सब ने दिया उपदेश, सब ने दिया चिंतन
लेकिन कुच्छ होना था
कुच्छ और ही हो गया
क्यों के वो मेरे दिल ने किया मनन।

अब तो ज़िंदगी ऐसी है
मा की आशीर्वाद से ऐसी ही रहे
कुच्छ भी हो
उसकी बरदान से यूहीं मुस्कुराहट बनी रहे
मेरी बातों को ज्यादा एहमियत ना देते हुये
सब खुश और सलामत रहे।

महाप्रसाद मिश्रा


2 comments:

  1. The 1st Stanza ............is too good and really appreciable......

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  2. Thanks Sir for appreciating. Have a great time...!!!

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