ज़रूरत नहीं होती तो कोई दरवाज़ा भी ना खट खटाता
ज़रूरत नहीं होती तो आज के ज़माने मैं कोई बात भी नहीं करता
कहाँ गया वो भाईचारा, वो अपना पन का नारा
क्या आज के दिन मैं यॅ सब दिखावा बन गया है....?
ये सारे लब्ज़ आज ज़रूरतो के आगे घूटने टेक रहे है
और अपनी मानसिकता एसी होगयी है
की हम अपनो को छोड़ के पैसों से खुसियां समेट रहे हैं !!!
महाप्रसाद मिश्रा
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