अँधेरा कभी कभी अच्छा लगता हे
ये अपने आपको ढूंढने मे मदद करता हे
अँधेरे मे बैठे हुए लौट जाता हूँ कुछ वो पुराने खयालो मे
जिसे भूलाना नामुमकिन हे
दोबारा वो पल जीने का अरमान तो हे
मगर पता हे, ये अँधेरे से निकल ने के बाद ये नामुमकिन जैसा हे
इसीलिए कभी कभी अँधेरा अच्छा लगता हे I
महाप्रसाद मिश्र
No comments:
Post a Comment