Saturday, December 20, 2014

अपनी लहू कर नहीं सकते अदा


जब जीवन उसने दिया
उसे लेने वाले हम हे कौन
नन्हीं कलियाँ तो खुसियां बिखेरते हैं
उन्हे मरोडनेवाले हम है कौन

क़त्ल क्यों कर आया उन मासूमों की
जिनकी ना तो कुच्छ खता थी
ना हेबानियत से कुच्छ नाता
पर चढ़ गये बलि बिना कीसी कारण के
ये नाइंसाफी देख रहा है वो खुदा
भुला हुआ इंसान को इंसानियत सिखादे हे मालिक
अब हर दिन दूसरों की खुसी केलिये अपनी लहू कर नहीं सकते अदा । 

महाप्रसाद मिश्रा 

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