Tuesday, September 9, 2014

क्या पता क्या हुआ मुझे (इक खत उसके नाम)

क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं
तुझे देखा तो एक खूबसूरत चाहत खिला मन मैं
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

दिन तो गया ही गया 
रातों को भी अब चैन नहीं
अकेले बैठे हुये तेरी याद मैं खोया मैं
आंखे है खूली फिर भी सोया हूँ मैं
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

आज तक कभी ऐसा हुआ न था
जैसे इक पल मे सारा जहां भूला मैं
कभी ना गीत सुनने वाला 
आज गज़ल सुनने लगा मैं
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

तेरे आने से जैसे चारो तरफ मेहक सा गया
तू गुजरी वो दूर से, लेकिन दिल मेरा इधर झूम सा गया
हाये, आँख झुकाके वो चलना तेरा
जब देखा, ये दिल मेरा प्यार का नया गीत लिखता गया...
लगता है जैसे इक पल मैं बदल गयी ज़िंदगी,
और बदल गया मैं...
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

एक दिन देखा नहीं तुझे तो दिल जैसे तड़प ने लगा
मन बेकरार ओर आँखें बेचैन होने लगा
सोचा आज मिलेगी तो दिल की बातें बयान करूंगा मैं
आई ही नहीं तू, इसीलिये ये खत लिख रहा हूँ मै
समझ ही जाना,
इक खत वापस आया तो ज़िंदगी संवर जायेगी मेरी
और “ हम ” बनजायेगा ये अकेला ओर तन्हा “ मैं ”
अगर जवाब आया नहीं तो सोच लूंगा
क्या पता कुच्छ हुआ था मुझे
अच्छा भला था कभी पागल हुआ था मैं
तेरी खुशियों के लिये दुआ करूंगा
सारी यादें लिये तेरी ज़िंदगी से चला जाऊँगा मैं !!!



महाप्रसाद मिश्रा

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