Saturday, December 20, 2014

अपनी लहू कर नहीं सकते अदा


जब जीवन उसने दिया
उसे लेने वाले हम हे कौन
नन्हीं कलियाँ तो खुसियां बिखेरते हैं
उन्हे मरोडनेवाले हम है कौन

क़त्ल क्यों कर आया उन मासूमों की
जिनकी ना तो कुच्छ खता थी
ना हेबानियत से कुच्छ नाता
पर चढ़ गये बलि बिना कीसी कारण के
ये नाइंसाफी देख रहा है वो खुदा
भुला हुआ इंसान को इंसानियत सिखादे हे मालिक
अब हर दिन दूसरों की खुसी केलिये अपनी लहू कर नहीं सकते अदा । 

महाप्रसाद मिश्रा 

Sunday, November 2, 2014

जीत से सीखा, हार से सीखा

जीत से सीखा, हार से सीखा
गालियों से सीखा, और तालियों से भी सिखा
की सर झुका हुआ अछा लगता है
अपनो का प्यार, सचाई ऑर गुरुओं के सामने
क्यों के इनमे भगबन बसे हैं।

 Mahaprasad Mishra
#LifeIsBeautiful

Saturday, November 1, 2014

कुच्छ वो बातें मेरे कलम से ...

अकेला था बैठा
दिल से आवाज आया
आज तक हसा तो कोई ना देख पाया
आज तक हसा तो कोई ना देख पाया
हुआ खामोश आज तो सब की नज़र मैं आया
 
जब हो रही बारिश तभी चुपके से आसूं बाहर आया
इस्से मैं किस्मत कहूँ या मेरी तक़दीर
इससे मैं किस्मत कहूँ या मेरी तक़दीर 
जब पेहना इंसानियत का चस्मा 
तभी दुनिया काला ही नज़र आया...
 
पर फिर भी दिल ने ना मानी मेरी बात
ओर मुझे समझाने को आया 
की भाई मेरे, ये असूल है इस युग का 
जो दूसरो के लिये सोचा, वो खुद केलिये कुच्छ ना करपाया 
सायद आया है तू इसी केलिए, तो ना देख दुनिया काला है या सफेद
कर हिम्मत, आगे बढ, किसीसे ना कर प्रभेद
जो उपर बैठा है वो देखा रहा है
तेरे बारे मैं भी कुच्छ सोच रहा है...
सोचना उससे और करना तुझे है...
असफल हो जाएगा ये जीवन तेरा
अगर तूने उसकी आशीर्वाद को ठुकराया
अफ़सोश रहेगा की इंसान होते हुए भी तू अगर कुच्छ ना करपाया...
 
भगबान पे भरोशा रखिये (Believe in God)

महाप्रसाद मिश्रा

Monday, October 27, 2014

छोड़ आये थे जो वो गलियाँ...

छोड़ आये थे जो वो गलियाँ
मूड कर देख रहे हैं आज जिसे
गलियाँ है तो वही ...
पर लोग है नये
ये तो समय का वो चक्र है...
जिस मे जाने नजाने कितने आये ओर कितने गये।

अब, वो पुराने लोगों से मिलने की आस है
मगर सोच रहा अब समय किस के पास है
वो कीमती वक़्त जो उनके साथ गुजर गया
वो तो अब  नहीं सकता ...
लेकिन जब मिलता हूँ दोस्तों से या करता हूँ बातें
अब सिर्फ वही पल खुसी है ओर वही पल खास है !!!

महाप्रसाद मिश्रा
(जीवन खूबसूरत है।)  

Sunday, September 28, 2014

सीने मैं क़ैद है... वो दर्द इस तरह...

सीने मैं क़ैद है वो दर्द इस तरह... जैसे चारो तरफ सीशे मैं क़ैद हे एक छबी जिस तरह !!!

महप्रसाद मिश्रा

Tuesday, September 9, 2014

क्या पता क्या हुआ मुझे (इक खत उसके नाम)

क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं
तुझे देखा तो एक खूबसूरत चाहत खिला मन मैं
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

दिन तो गया ही गया 
रातों को भी अब चैन नहीं
अकेले बैठे हुये तेरी याद मैं खोया मैं
आंखे है खूली फिर भी सोया हूँ मैं
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

आज तक कभी ऐसा हुआ न था
जैसे इक पल मे सारा जहां भूला मैं
कभी ना गीत सुनने वाला 
आज गज़ल सुनने लगा मैं
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

तेरे आने से जैसे चारो तरफ मेहक सा गया
तू गुजरी वो दूर से, लेकिन दिल मेरा इधर झूम सा गया
हाये, आँख झुकाके वो चलना तेरा
जब देखा, ये दिल मेरा प्यार का नया गीत लिखता गया...
लगता है जैसे इक पल मैं बदल गयी ज़िंदगी,
और बदल गया मैं...
क्या पता क्या हुआ मुझे
अच्छा भला था पागल हुआ मैं।

एक दिन देखा नहीं तुझे तो दिल जैसे तड़प ने लगा
मन बेकरार ओर आँखें बेचैन होने लगा
सोचा आज मिलेगी तो दिल की बातें बयान करूंगा मैं
आई ही नहीं तू, इसीलिये ये खत लिख रहा हूँ मै
समझ ही जाना,
इक खत वापस आया तो ज़िंदगी संवर जायेगी मेरी
और “ हम ” बनजायेगा ये अकेला ओर तन्हा “ मैं ”
अगर जवाब आया नहीं तो सोच लूंगा
क्या पता कुच्छ हुआ था मुझे
अच्छा भला था कभी पागल हुआ था मैं
तेरी खुशियों के लिये दुआ करूंगा
सारी यादें लिये तेरी ज़िंदगी से चला जाऊँगा मैं !!!



महाप्रसाद मिश्रा

Monday, September 8, 2014

ज़रूरत

ज़रूरत नहीं होती तो कोई दरवाज़ा भी ना खट खटाता
ज़रूरत नहीं होती तो आज के ज़माने मैं कोई बात भी नहीं करता
कहाँ गया वो भाईचारा, वो अपना पन का नारा
क्या आज के दिन मैं यॅ सब दिखावा बन गया है....?
ये सारे लब्ज़ आज ज़रूरतो के आगे घूटने टेक रहे है
और अपनी मानसिकता एसी होगयी है
की हम अपनो को छोड़ के पैसों से खुसियां समेट रहे हैं !!!

महाप्रसाद मिश्रा 

I am Special


Sunday, August 3, 2014

अपनी मीटी छोड कर बाहर रहना हैं हमे...

अपनी मीटी छोड कर बाहर रहना हैं हमे...
घर की याद नहीं... पैसे केलिये काम करना हैं हमे
इतना तो कभी सोचा होता... की कोई वहाँ इंतज़ार मैं हैं
घूम आना सारी दूनिया...
मगर याद रखना मरना तो अपनी मीटी मैं है...

महप्रसाद मिश्रा

Happy Friendship Day !!!


Wednesday, June 18, 2014

इक चाहत...

दर्द छुपाते छुपाते मुस्कुराना सीख गए
बाते करते करते खामोश होना सिख गए
इक चाहत थी... देखने की तुझे... 
तेरे इंतेज़ार मैं जागते जागते सोना भी सिख गए... 

महप्रसाद मिश्र 

Sunday, March 30, 2014

The Path is like this ......... And you will have to walk like this way

I live everyday with lots of hope
Believe today is my day
As, I am very close to my dreams
And find them achievable
Today decided to win
And chose a path which is believable
But hey what these things happened...?
Consequences were different
And I felt I have been dragged away
As if dreams were shying away...
I was feeling low...
At that time some unseen power made me understand
The Path is like this
And you will have to walk like this way

Then again I met with my friend
He had a different story...
But the feelings were same
As if time is reluctant to award against the dedication
Feeling like in front of destiny, I am just a small creature
Struggling to survive and fighting with my future
Again someone as if saying, keep putting your best...
Wait for the right time as destiny will take care of rest
And again realized...
The Path is like this
And you will have to walk like this way


Then again I met with a student
He was studying hard for his exams
His expectations were ruined when he saw the questions
The questions were what he left out
He was feeling harassed
As he believed his dedication was disrespected...
Still he had to write as no choice was there...
He wrote what he learnt and he learnt what he did not know
He applied all his concepts and gave it a try...
It’s true he struggled
But when he came out of exam hall, he felt confident
He believed in himself and got motivated to learn the concepts than to learn the answers...
He got a charm and realized Questions are unpredictable
And, The Path is like this
And you will have to walk like this way

Another day I met with a patient who’s crying
Disease is unknown and but pain he had to undergo
Doctors prescribed medicines...
And advised pain will be there till medicines start working
The patient was crying and after some time he accepted the pain
He realized... if I cry I am loosing stamina...
It’s only me who has to take the pain...
My family has done their best to help me...
But I need to wait till the medicine works....
He stopped crying and acted normal with pain
He thought and understood...
The Path is like this
And you will have to walk like this way

I met with my Boss...
He was very happy with the day’s progress...
Numbers were happening and everything going great...
But one employee’s commitment which was unknown to the Boss
Created all the mess up...
Boss became angry
And never hesitated in releasing his feelings even in front of all
The employee was feeling very bad...
He’s feeling, he has been unnecessarily dragged in to conflict
And thinking has he truly done so much wrong...???
For some other’s deeds, he’s getting screwed...
He was alone... He felt his dedications are mocked...
Came away from the rush ... sat in a corner...
He realized he’s undone as he’s bonded...
He understood the fact ... recited the name of God...
And decided to take some time to prove among everyone...
When proved... he will leave making the Boss realize and think
He kept on moving by thinking
The Path is like this
And you will have to walk like this way


To be contd...

Do believe in God
Mahaprasad Mishra

Wednesday, January 15, 2014

जब कदम थक ने लगे तो ये मत सोचना की अब पैरों मैं दम नहीं ... (कुच्छ वो बातें मेरे कलम से ...)

जब कदम थक ने लगे तो ये मत सोचना की अब पैरों मैं दम नहीं ...

जब कदम थक ने लगे तो ये मत सोचना की अब पैरों मैं दम नहीं ...

जरा आईने  मैं देखना ...

.... जरा आईने  मैं देखना ...

कहीं वो मन की इच्छा और अधुरे स्वप्न को पुरा करने वाला वो जोश कहीं कम तो नहीं

फिर एहसास होगा.....

....फिर एहसास होगा.....

की मंज़िल मेरा दुर इंतज़ार कर रही है...

मुझे आगे हर हाल बढना है .... थोडा समय भी लगे तो भी कोई गम नहीं .... !!!!!!


महप्रसाद मिश्रा 

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